टैलीपैथी और रेकी हीलिंग:
डॉ. यूनिवर्सएक एक प्रसिद्ध टैलीपैथी और रेकी विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते है और अपनी इस अदभूत शक्ति के माध्यम से आप ने लोगों की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक और व्यावसायिक प्रकार की परेशानियों में यशस्वी रूप से मार्गदर्शन कर उनके जीवन में पुन खुशियां लौटाई और उनका सामर्थ्य बढ़ाया।
भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास यानी टेलीपैथी है। आमतौर पर हमें वर्तमान की अपने आसपास की घटनाओं की जानकारी होती है। भविष्य अथवा पूर्वजन्मों की घटनाओं का हमें ज्ञान नहीं होता है। परंतु, कभी – कभी हमारे के जीवन में कोई ना कोई ऐसी घटना घट जाती है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इसान में जरूर कोई विलक्षण शक्ति कार्य कर रही है, जो अतीत, भविष्य अथवा वर्तमान में झांकने की क्षमता रखती है। सामान्यतः हम पांच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए द्वारा वस्तु को महसूस कर पाते हैं, परंतु कुछ खास व्यक्तियों में अपनी साधना व् उपासना के माध्यम से छठी इंद्री जागृत हो जाती है। इस इंद्री को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) का नाम दिया है। दरअसल हम सबमें थोड़ी बहुत टैलीपैथी होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह इतनी शक्तिशाली होती है कि वह अपनों के साथ घटने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं को आसानी से जान लेते है और उनका मार्गदर्शन कर सकते है।
रेकी शब्द में ‘रे’ का अर्थ है वैश्विक और ‘की’ का अर्थ है प्राण। विभिन्न लोगों द्वारा किये गये शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि इस विधि को आध्यात्मिक चेतन अवस्था या अलौकिक ज्ञान भी कहा जा सकता है। इसे सर्व ज्ञान भी कहा जाता है जिसके द्वारा सभी समस्याओं की जड़ में जाकर उनका उपचार खोजा जाता है। रेकी का मतलब वैश्विक जीवन ऊर्जा है जो हमारे आस पास ही है और उसे मस्तिष्क द्वारा ग्रहण किया जा सकता है।
रेकी को एक आध्यात्म आधारित अभ्यास के तौर पर जाना जाता है। चिन्ता, क्रोध, लोभ, उत्तेजना और तनाव शरीर के अंगों एवं नाड़ियों में हलचल पैदा कर देते हैं, जिससे रक्त धमनियों में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों के परिणाम हैं। शारीरिक रोग वास्तव में मानसिक रोगों से प्रभावित होते है। रेकी बीमारी के कारण को जड़ से नष्ट करती है, स्वास्थ्य स्तर को उठाती है। बीमारी के लक्षणों को दबाती नहीं है। रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं का संतुलन होता है और शारीरिक तनाव बैचेनी व दर्द से छुटकारा मिलता जाता है। रेकी गठिया, दमा, कैंसर, रक्तचाप, पक्षाघात, अल्सर, एसिडिटी, पथरी, बवासीर, मधुमेह, अनिद्रा, मोटापा, गुर्दै के रोग, आंखों के रोग, स्त्री रोग, बाँझपन, शक्तिन्यूनता और पागलपन तक दूर करने में समर्थ है। इस प्रक्रिया में, लोगों को सिर्फ देखने से, उनसे बात करने से या केवल स्पर्श मात्र से भी उनके अंदर की असंतुलित ऊर्जा को पहचान कर उनका निदान और उपचार बेहतरीन रूप से किया जाता है।
उपलब्ध सेवाएं:
मानसिक विकासः
वर्तमान समय में दुनिया का हर एक व्यक्ति भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु अजीब सी स्पर्धा में भाग रहा है। भागते-भागते इन्सान की अपेक्षाओं का बोझ इस हद तक बढ़ जाता है कि वह मानसिक और शारीरिक रूप से प्रतिदिन कमजोर होते-होते अवसाद का शिकार हो जाता है। वह नौकरी, व्यवसाय, पारिवारिक क्लेश, सामाजिक प्रतिष्ठा का दबाव सह नहीं पाता। यह स्थिति व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर कर देती है। घर, रिश्तेदार, ऑफिस, मित्र, समाज इन सबके बीच अपमानित भावना का अहसास होने लगता है। दिन प्रति दिन परिस्थितियां और भी भयानक होती रहती है जिसका परिणाम विफलता और निराशा लाता है। इस स्तिथि से उभरने हेतु, डॉ. यूनिवर्स आपकी परेशानियों को बारीकी से समझते हुए आपको मार्गदर्शन, उपचार तथा सहायता प्रदान करते हैं।
रोग निदान तथा उपचारः
यूनिवर्सिद्ध की टेलीपैथी और रेकी प्रक्रियाओं द्वारा रोगों का निदान व उपचार पूर्णतः नैसर्गिक रूप से किया जाता है। कई छोटी समस्याए भविष्य में खतरनाक बनने से पहले ही पता लग सकती है और उसका उपचार भी आसानी से हो जाता है। आजकल गलत डॉक्टरों, चिकित्सकों, अस्पतालों और दवाइयों के चक्कर में लाखो रूपए, समय और ऊर्जा सिर्फ व्यर्थ बनकर रह जाती है और एक मामूली बीमारी जानलेवा बन जाती है। ऐसे समय में डॉ. यूनिवर्स आपको यह सेवा यूनिवर्सिद्ध वैल नेस सेंटर पर प्रत्यक्ष मिलकर या वीडियो कॉल पर भी दे सकते है।
व्यवसाय तथा जीवन विकास मार्गदर्शनः
वैश्विक स्तर पर बहोत तेजी से आर्थिक और व्यावसायिक बदलाव हो रहे है, नए तंत्रविज्ञान और तकनीक विकसित हो रही है और साथ साथ स्पर्धा भी बढ़ रही है। हर साल नौकरियों में हजारों की तादात में कटौतियां हो रही है। व्यापार/व्यवसाय भी दिन प्रति दिन सुस्त हो रहा है जिसका असर सीधे तौर से आमदनी पर होता है। वैश्विक बदलाव के ऐसे समय में यूनिवर्सिद्ध का मार्गदर्शन आपको एक नई राह दे सकता है जो आपका वर्तमान और भविष्य बेहतर बनाने में मददगार साबित हो।
आयुर्वेदिक उपचारः
आयुर्वेद मानव को ब्रह्मांड की प्रतिकृति अर्थात लघु ब्रह्मांड समझता है। इसलिए कहते है – यथा पिडे तथा ब्रह्मांडे।
आयुर्वेदिक में इलाज के नियम एलोपैधिक ट्रीटमेंट से पूरी तरह से अलग है। आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार हर व्यक्ति के शरीर में एक विशेष ऊर्जा होती है, जो शरीर को किसी भी बीमारी से ठीक करके उसे वापस स्वस्थ अवस्था में लाने में मदद करती है। इसमें किसी भी रोग का इलाज पंचकर्म (Panchkarma) प्रक्रिया पर आधारित होता है, जिसमें दवा, उचित आहार, शारीरिक गतिविधि और शरीर की कार्य प्रक्रिया को फिर से शुरू करने की गतिविधियां शामिल है। इसमें रोग का इलाज करने के साथ-साथ उसे फिर से विकसित होने से रोकने का इलाज भी किया जाता है, अर्थात् आप यह भी कह सकते हैं कि आयुर्वेद रोग को जड़ से खत्म करता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में रोग से लड़ने के साथ – साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाया जाता है। आयुर्वेद में जड़ी बूटियों व इनके मिश्रण से बने उत्पादों का इस्तेमाल कई अलग-अलग कारकों की जांच करके किया जाता है, जैसे –
- पौधे का ज्ञान, विज्ञान और उसकी उत्पत्ति
- पौधे का जैव रसायनिक ज्ञान
- मानव शरीर व मानसिक स्थितियों पर उसका असर
किसी भी जड़ी बूटी का इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि लाभकारी प्रभावों के अलावा इसके इस्तेमाल से शरीर पर क्या असर पड़ता है। आयुर्वेद में पंचकर्म शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है। आज समस्त विश्व का ध्यान आयुर्वेदीय चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हो रहा है, जिसके तहत यूनिवर्सिद्ध वैल नेस सेंटर पर भारत की अनेक जडीबूटियों का उपयोग अपनी चिकित्सा में किया जाता है। आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति की यह विशेषता है कि इनमें रोगों का उपचार इस प्रकार किया जाता है कि रोग जड़ से नष्ट किया जाए एवं पुनः उत्पत्ति न हो।
यूनिवर्सिद्ध वैतन्य नगरी में शतायुषि आयुर्वेद चिकित्सा के अंतर्गत बी.पी, कोलेस्ट्रॉल, ब्लॉकेज, कैंसर, तनाव, कमर दर्द, जोड़ों में दर्द, गठिया, माइग्रेन, मिर्गी, सिरदर्द, ल्युकोरिया, मासिक धर्म की अनियमितता, गर्भाशय में गाठे, दाद, खाज, खुजली, एलर्जी, सोरायसिस, सफेद दाग, झाइया, गैस, कब्ज, पेट फूलना, बवासीर, पीलिया, फैटी लिवर, पथरी, पेशाब में जलन, प्रोस्टेट, किडनी फेल्युअर, क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड तथा शुगर का पचार बेहतरीन तरीके से होता है। पिछले कई वर्षों में लाखो लोगों ने इस स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठाया है।
आध्यात्मिक मनोविकास व कल्याण (Spiritual Wellbeing):
आध्यात्मिक मनोविकास:
आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। यदि आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम सत्ता के अंश को देखते है, जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक है। अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इनके निर्माता है, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर है। आप जो भी कार्य करते हैं, अगर उसमें सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आप अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईर्ष्या और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी हो, उनके बावजूद भी अगर आप अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनंद में रहते है. तो आप आध्यात्मिक है। अगर आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद की स्थिति का एहसास बना रहता है तो आप आध्यात्मिक है। आपके अंदर अगर सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है. तो आप आध्यात्मिक है। आध्यात्मिकता का किसी धर्म, संप्रदाय या मत से कोई संबंध नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं, आध्यात्मिकता इसके बारे में है।
अध्यात्म की यात्रा स्वयं से सर्व तक की यात्रा है तो खुद से परिचय करने के लिए स्वयं से मैत्री, प्रेम, धैर्य, अनुशासन के गुणों का सहारा लेना होता है। एक प्रेममय भाव दशा में रहना होता है, जिस्से हमारा जीवन सुखमय और शांति पूर्ण होने लगता है। ऐसी आध्यात्मिकता हमारे जीवन को नया आयाम देती है।आध्यात्मिक देखभाल को आदर्श रूप से एक व्यक्ति की संपूर्ण जीवन शैली में शामिल करना चाहिए। जीवनशैली का अर्थ है जिस तरह से हम रहते हैं और काम करते हैं। इसमें सार्वजनिक और निजी जीवन में हमारे खाने, कपड़े पहनने, बात करने, सोचने और व्यवहार करने का तरीका शामिल है।
- आहार (भोजन): हम क्या खाते है, कितना खाते हैं और कैसे खाते हैं।
- विहार (विश्राम): जिस तरह से हम अपने आप को विश्राम, मनोरंजन और खाली समय की गतिविधियों में संलग्न करते हैं।
- विचार (सोच): हमारी मानसिक रचना, भावनात्मक नियंत्रण, जीवन के प्रति समझ और दृष्टिकोण।
- व्यवहार (क्रिया): हम वास्तव में सार्वजनिक और निजी जीवन में क्या और कैसा व्यवहार करते हैं।
ध्यान:
चित्त की एकाग्रता को ध्यान कहते है। ध्यान चिन्तन की ही एक प्रक्रिया है, ध्यान का कार्य चिन्त करना नहीं अपितु चिन्तन का एकाग्रीकरण अर्थात चिन्त को एक ही लक्ष्य पर स्थिर करना ध्यान कहलाता है। वस्तुतः ध्यान किया नहीं जाता परन्तु धारणा करते- करते ध्यान लग जाता है, अतः धारणा की उच्च अवस्था ध्यान है। यह योग के आठ अंगो (यम्, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि) में से सातवां अंग है जो समाधि से पूर्व की अवस्था है। यह समाधि सिद्धि के पूर्व की अवस्था है।
ध्यान से आत्म साक्षात्कार होता है। ध्यान को मुक्ति का द्वार कहा जाता है। ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी आवश्यकता हमें लौकिक जीवन में भी है और अलौकिक जीवन में भी है। ध्यान को सभी दर्शनों, धर्मों व संप्रदायों में श्रेष्ठ माना गया है। सभी योगी ध्यान की तैयारी स्वरूप अलग अलग विधियों को अपनाते है और ध्यान तक पहुँचकर लगभग एक हो जाते हैं।
ध्यान के प्रकार:
ध्यान तीन प्रकार का है – स्थूल ध्यान, ज्योतिर्मय ध्यान और सूक्ष्म ध्यान।
- स्थूल ध्यान वह कहलाता है, जिसमें मूर्तिमय इष्टदेव का ध्यान हो,
- ज्योतिर्मय ध्यान वह है, जिसमें तेजोमय ज्योतिरूप ब्रह्म का चिंतन हो,
- सूक्ष्म ध्यान उसे कहते हैं. जिसमें बिंदुमय ब्रह्म कुंडलिनी शक्ति का चिंतन किया जाए।
ध्यान का महत्व:
निज स्वरूप को मन से तत्वतः समझ लेना ही ध्यान होता है। ध्यान करते करते जब चित्त ध्येपकार में परिणत हो जाता है. उसके अपने स्वरूप का अभाव सा हो जाता है। धारणा में केवल लक्ष्य निर्धारित होता है, जबकि ध्यान में ध्येय की प्राप्ति और उसकी प्रतीति होती है। ध्यान के माध्यम से क्लेशों की स्थूल वृत्तिपों का नाष हो जाता है। धारणा, ध्यान और समाधि तीनों को संयम कहा गया है। ध्यान के द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। ध्यान एक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास में हमारी सहायता कर हमें अपने संपूर्ण अस्तित्व का स्वामी बनाने में सक्षम है। मानव में विभिन्न शक्तियों का समुच्चय उपलब्ध है। प्रत्येक शक्ति के विकास के अपने विधि-विधान है। इन सभी शक्तियों का संगम ही हमारा जीवन है। जब हम ध्यान का अभ्यास शुरु करते हैं तब हम अपने अस्तित्व और अपने व्यक्तित्व के प्रत्येक आयाम के विकास की प्रक्रिया में गतिशीलता लाते हैं।
ध्यान के द्वारा सूक्ष्म मन के अनुभवों को स्पष्ट किया जाता है। जैसे जैसे हम अपने भीतर, सूक्ष्म अनुभवों को जानने में सक्षम होते जाते है हम अन्तर्मुखी होते हैं, यह आत्मसाक्षात्कार की अवस्था है। आत्म साक्षात्कार का तात्पर्य यहाँ पर सीधा ईश्वर से सम्वन्ध नहीं, स्वयं के अनुसंधान से है। ध्यान अपने आपको पहचानने की प्रक्रिया है, स्वयं का साक्षात्कार होना, स्वयं को जानना ध्यान के द्वारा ही संभव है। ध्यान प्राचीन, भारतीय ऋषि-मुनियों, विद्वानो द्वारा प्रतिपादित एक अनमोल विशिष्ट पद्धति है। इसके द्वारा मनुष्य का समग्र उत्थान, उत्कर्ष और विकास संभव है।